सीबीआई की एफआईआर में जय अनमोल अंबानी, आरएचएफएल के पूर्व सीईओ रवींद्र सुधालकर और पूर्व निदेशक का नाम आरोपियों में शामिल है। यह मामला 228.06 करोड़ रुपये के कथित धोखाधड़ी वाले ऋण लेनदेन से जुड़ा है। अधिकारियों का दावा है कि इसमें मनी लॉन्ड्रिंग और बैंकिंग धोखाधड़ी शामिल है। आरोपियों ने कथित तौर पर कॉर्पोरेट शेल संरचनाओं का इस्तेमाल किया। जांचकर्ताओं को अधिकारियों के साथ मिलीभगत और अनधिकृत हस्तांतरण का संदेह है। आरएचएफएल ऋण पुस्तिकाओं और लेनदेन रिकॉर्ड की गहन समीक्षा की जाएगी। इस शिकायत के बाद सीबीआई द्वारा व्यापक वित्तीय ऑडिट शुरू किया जाएगा
कौन से संस्थान अब जांच के दायरे में हैं?
एफआईआर मुख्य रूप से आरएचएफएल (रिलायंस हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड) को निशाना बना रही है। पूर्व अधिकारियों और बोर्ड सदस्यों के भी नाम हैं। कई संस्थानों के बैंक रिकॉर्ड की जाँच की जा सकती है। मामला उन साझेदार बैंकों तक पहुँच सकता है जिन्होंने ऋण दिए थे। सीबीआई खाता प्रबंधन करने वाले बैंक कर्मचारियों से पूछताछ कर सकती है। वित्तीय लेखा परीक्षा एजेंसियों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। ऋण वितरण और पुनर्भुगतान के लेन-देन का व्यापक रूप से पता लगाए जाने की उम्मीद है।
कार्रवाई करने के लिए नियामकों को किस बात ने प्रेरित किया?
समूह पहले से ही ईडी की प्रवर्तन कार्रवाई का सामना कर रहा था। इससे पहले ईडी ने कई शहरों में हज़ारों करोड़ रुपये की संपत्ति ज़ब्त की थी। आरोपों में मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर संपत्ति छिपाने तक के आरोप शामिल थे। सीबीआई द्वारा दर्ज की गई यह एफआईआर बढ़ते नियामक दबाव का नतीजा है। आरएचएफएल के खातों में विसंगतियां सामने आने के बाद जांच का दायरा बढ़ा। बैंकों ने कथित तौर पर अनियमित भुगतानों की ओर ध्यान दिलाया। अधिकारियों ने वित्तीय जांच से आपराधिक जांच की ओर रुख करने का फैसला किया।
जांच प्रक्रिया में आगे क्या होता है?
सीबीआई कंपनी के दस्तावेज़ों को तुरंत ज़ब्त कर सकती है। ऋण फ़ाइलें, बोर्ड मीटिंग के मिनट्स और आंतरिक संचार महत्वपूर्ण सबूत होंगे। कंपनी के अधिकारियों और बैंक के हस्ताक्षरकर्ताओं को तलब किया जा सकता है। फ़ोरेंसिक ऑडिट से धन प्रवाह का पता लगाया जाएगा। अगर सबूत सही साबित होते हैं, तो संपत्ति ज़ब्त की जा सकती है और गिरफ़्तारियाँ भी हो सकती हैं। ज़ब्त की गई संपत्तियों में संपत्तियाँ और कॉर्पोरेट होल्डिंग्स शामिल हो सकती हैं। अभियोजन के लिए कई एजेंसियाँ समन्वय कर सकती हैं।
इसका अंबानी परिवार के कॉर्पोरेट हितों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
यह मामला रिलायंस समूह की मौजूदा कानूनी मुश्किलों को और गहरा कर सकता है। शेयरधारकों और ऋणदाताओं का भरोसा डगमगा सकता है। लंबित परियोजनाएँ और नए वित्तपोषण रुक सकते हैं। शेयर बाज़ार धोखाधड़ी और जाँच की खबरों पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं। संबंधित कंपनियों की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँच सकती है। नियामक जुर्माना और प्रतिबंध संभव हैं। परिवार की सार्वजनिक छवि को गहरा धक्का लग सकता है।
रिलायंस समूह की ओर से अब तक आधिकारिक प्रतिक्रिया क्या रही है?
अभी तक कंपनी ने कोई औपचारिक टिप्पणी जारी नहीं की है। निदेशक मंडल सार्वजनिक रूप से चुप है। अदालत में अभी तक कोई बयान दर्ज नहीं किया गया है। कानूनी टीम खंडन तैयार कर सकती है या ज़मानत की माँग कर सकती है। कंपनियाँ आरोपों के पुनर्मूल्यांकन का इंतज़ार कर सकती हैं। वे धोखाधड़ी के बजाय व्यावसायिक चूक का दावा कर सकती हैं। हितधारकों को जल्द ही आधिकारिक रुख़ स्पष्ट होने का इंतज़ार है।
बैंकिंग निरीक्षण के लिए व्यापक निहितार्थ
इस एफआईआर के कारण कॉर्पोरेट वित्तपोषित हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की कड़ी जाँच हो सकती है। नियामक संस्थाएँ ऋण देने के नियमों को सख्त कर सकती हैं। बैंक संबंधित कंपनियों को जारी किए गए पिछले ऋण पोर्टफोलियो की समीक्षा कर सकते हैं। रियल एस्टेट ऋण क्षेत्र पर निगरानी बढ़ाई जा सकती है। कॉर्पोरेट प्रशासन में विश्वास पर नए सिरे से सवाल उठ सकते हैं। इसी तरह के नियामक दबाव में आने वाली अन्य कंपनियाँ भी जाँच के दायरे में आ सकती हैं। यह मामला विभिन्न उद्योगों में प्रवर्तन मानदंडों और अनुपालन मानकों को नया रूप दे सकता है।

























