नई दिल्ली. जैसे-जैसे उत्तर भारत में सर्दी का मौसम शुरू होता है, वैसे-वैसे हर साल इस समय इस क्षेत्र में धुंध की चादर छाने लगती है। जबकि सुर्खियाँ अक्सर खराब वायु गुणवत्ता के कारण श्वसन और हृदय संबंधी समस्याओं पर प्रकाश डालती हैं, समानांतर रूप से एक खामोश संकट सामने आता है – मानसिक स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव। इस छिपे हुए नुकसान की गंभीरता पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि लाखों लोगों की भावनात्मक भलाई अधर में लटकी हुई है।
चिड़चिड़ापन और चिंता में वृद्धि होती
ऐतिहासिक 2019 के अमेरिकी और डेनमार्क के अध्ययन ने इस बात की पुष्टि की कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से अवसाद, द्विध्रुवी विकार और सिज़ोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित शोध ने बताया कि PM2.5 जैसे सूक्ष्म कणों के अल्पकालिक संपर्क से भी चिंता और अवसाद के लक्षण बढ़ सकते हैं।वायु प्रदूषण से निकलने वाले PM2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे तत्व मस्तिष्क में सूजन बढ़ाकर तंत्रिका प्रक्रियाओं को बाधित करते हैं। इसके कारण भावनात्मक अस्थिरता, निराशा, चिड़चिड़ापन और चिंता में वृद्धि होती है।
शहरी जीवन पर प्रदूषण का प्रभाव
दिल्ली जैसे प्रदूषित शहरी इलाकों में रहने वाले परिवार इस खतरे का असल जीवन में सामना कर रहे हैं। इसके नतीजे सिर्फ स्वास्थ्य तक सीमित नहीं रहते, बल्कि जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करते हैं: आर्थिक दबाव: बढ़ते चिकित्सा खर्च मध्यम आय वर्ग के परिवारों के लिए आर्थिक और भावनात्मक तनाव का कारण बनते हैं। कार्यस्थल तनाव: वयस्कों को प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से बार-बार छुट्टी लेनी पड़ती है, जिससे नौकरी की सुरक्षा और उत्पादकता पर असर पड़ता है।
शिक्षा पर असर: प्रदूषण के चरम दिनों में स्कूल बंद होने से बच्चों की पढ़ाई में बाधा आती है, जिससे माता-पिता और बच्चों दोनों में चिंता बढ़ती है। एक हालिया सर्वेक्षण में, उत्तर भारत के 45% लोगों ने शीतकालीन वायु प्रदूषण के कारण तनाव और असहायता महसूस करने की बात कही।
नियोक्ताओं की भूमिका
इस संकट में नियोक्ता अहम भूमिका निभा सकते हैं। वे कर्मचारियों की मदद के लिए कई कदम उठा सकते हैं: जागरूकता फैलाना: प्रदूषण से बचाव के उपाय और माइंडफुलनेस जैसी तकनीकों को बढ़ावा दें। लचीली कार्य नीतियां: खराब वायु गुणवत्ता के दिनों में दूरस्थ कार्य विकल्प प्रदान करें। मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं: कर्मचारियों को काउंसलिंग और ध्यान सत्र जैसी सेवाएं उपलब्ध कराएं।
संसाधन देना: वायु शोधक और स्वास्थ्य देखभाल खर्च के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करें।
नीति और सामूहिक प्रयास
इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार, नागरिक और कॉरपोरेट संस्थाओं के बीच सहयोग आवश्यक है। नीतियों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं को जोड़ा जाना चाहिए, जैसे हॉटलाइन सेवाएं और सामुदायिक कल्याण कार्यक्रम।वायु प्रदूषण का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव एक अत्यावश्यक और जटिल चुनौती है, लेकिन यह असंभव नहीं है। जागरूकता को बढ़ावा देकर, लचीलापन बनाकर और प्रणालीगत परिवर्तनों की वकालत करके, हम प्रभावित लोगों को इस संकट से बेहतर तरीके से निपटने में मदद कर सकते हैं। आइए हम न केवल स्वच्छ हवा में सांस लें बल्कि सभी के लिए एक स्वस्थ, अधिक भावनात्मक रूप से संतुलित भविष्य भी बनाएं।

























