नई दिल्ली. संसद का हालिया बजट सत्र कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। इस सत्र ने न केवल विधायी कार्य को गति दी, बल्कि लोकतांत्रिक संवाद और विचार-विमर्श के नए कीर्तिमान भी स्थापित किए। राज्यसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पर बहस 17 घंटे 2 मिनट तक चली, जो एक दिन में सबसे लंबी चर्चा का रिकॉर्ड है, जबकि लोकसभा में शून्यकाल एक दिन में लगभग 5 घंटे तक चला, जो अब तक का सबसे लंबा शून्यकाल था। इन उपलब्धियों ने संसद की कार्यप्रणाली और जन प्रतिनिधियों की अपनी जिम्मेदारी के प्रति गंभीरता को भी उजागर किया है।
वक्फ संशोधन विधेयक पर गुरुवार को राज्यसभा में यह ऐतिहासिक बहस हुई, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों ने सक्रिय भागीदारी दिखाई। चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने इसे लोकतांत्रिक संवाद का अद्भुत उदाहरण बताया। इस परिचर्चा में न केवल विषय पर गंभीर चर्चा हुई, बल्कि हास्य, व्यंग्य और कटाक्ष से सकारात्मक माहौल भी कायम रहा। इस दौरान सदन की कार्यवाही सुबह 4:02 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई और कुल मिलाकर एक बैठक में कार्यवाही 17.23 घंटे तक चली, जो राज्यसभा के इतिहास में सबसे लंबी कार्यवाही है।
इस सत्र ने लोकसभा में भी रिकॉर्ड कायम
गुरुवार को करीब 5 घंटे का शून्यकाल हुआ जिसमें जनप्रतिनिधियों ने 202 मुद्दे उठाए। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया कि पूरे सत्र के दौरान शून्यकाल में 691 विषय उठाए गए तथा नियम 377 के तहत सदन में जनहित के 566 मुद्दे उठाए गए। सत्र 161 घंटे चला जो निर्धारित समय से 18 प्रतिशत अधिक था। इस दौरान मछुआरों की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए एक प्रस्ताव पर भी चर्चा की गई, जो जमीनी स्तर पर समस्याओं के प्रति संसद की गंभीरता को दर्शाता है।
वक्फ बिल पर ऐतिहासिक चर्चा
राज्यसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पर बिना किसी रुकावट के 17 घंटे 2 मिनट तक चली बहस संसदीय इतिहास में एक विशेष स्थान रखेगी। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया और कहा कि इस रिकॉर्ड को तोड़ना बहुत मुश्किल होगा। इससे पहले 1981 में आवश्यक सेवा अधिनियम पर 16 घंटे 51 मिनट तक बहस हुई थी, जिसे अब तक की सबसे लंबी बहस माना गया था।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि…
इस सत्र में जनप्रतिनिधियों ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति बड़ी प्रतिबद्धता दिखाई है। शून्यकाल के दौरान बड़ी संख्या में मुद्दे उठाए गए, ताकि जनता की आवाज संसद तक पहुंच सके। यह सत्र विधायी और जनहित दोनों दृष्टिकोणों से बहुत सफल और यादगार रहा। बजट सत्र के दौरान राज्यसभा और लोकसभा में कुल 18 विधेयक पारित किये गये तथा 10 विधेयक पुनः प्रस्तुत किये गये। इस सत्र ने न केवल संसद की कार्यकुशलता को सिद्ध किया, बल्कि लोकतंत्र की ताकत को भी नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
इतिहास कब रचा गया?
राज्य सभा के इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है कि सदन की कार्यवाही देर रात तक स्थगित करनी पड़ी है। 1986 में मुस्लिम महिला विधेयक पर चर्चा दोपहर 1:52 बजे तक चली और बोफोर्स मामले पर बैठक दोपहर 3:22 बजे तक चली। 1987 में ठक्कर आयोग की रिपोर्ट और 1988 में जेपीसी की रिपोर्ट पर भी देर रात तक बहस हुई। 1989 में सांप्रदायिक स्थिति और संवैधानिक संशोधन पर चर्चा आधी रात के बाद तक जारी रही। 1991 में राजीव गांधी की हत्या पर बहस दोपहर 1:15 बजे तक जारी रही। लोकसभा में सबसे लम्बी बहस हमारे लोकतंत्र की स्थिति पर 20.08 घंटे तक चली, जबकि रेल बजट और अन्य मुद्दों पर भी लम्बी चर्चा हुई।

























