एआईएमएस के अध्ययन ने साफ बताया कि भारत में पैलीएटिव केयर बहुत सीमित है। अधिकतर सुविधाएँ बड़े शहरों में हैं। छोटे कस्बों में इसकी पहुँच लगभग ना के बराबर है। मरीजों को राहत वाली देखभाल समय पर नहीं मिल पाती। कई परिवार समझते ही नहीं कि यह सेवा कब और क्यों ज़रूरी है। सरकार की योजनाओं में भी इसे कम जगह मिलती है। इसलिए मरीज इलाज के बीच सबसे कठिन समय अकेले झेलते हैं।
पैलीएटिव केयर होती क्या है?
यह इलाज का वह तरीका है जो दर्द और तनाव को कम करता है। इसमें बीमारी ठीक करने की कोशिश नहीं होती। बल्कि मरीज को आराम पहुँचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है। डॉक्टर, नर्स और प्रशिक्षित स्टाफ मिलकर यह सेवा देते हैं। सांस लेने में दिक्कत, भूख की समस्या, दर्द और चिंता सबमें राहत दी जाती है। कई देशों में यह सामान्य स्वास्थ्य सेवा का हिस्सा है। भारत में अभी इसकी शुरूआत भी अधूरी है।
मरीजों को दिक्कतें क्यों बढ़ती हैं?
सही जानकारी की कमी सबसे बड़ा कारण है। लोग सोचते हैं कि पैलीएटिव केयर सिर्फ आखिरी दिनों में होती है। लेकिन यह शुरुआत से ही मिल सकती है। कई डॉक्टर भी इसकी अलग ट्रेनिंग नहीं लेते। इसलिए मरीज को समय पर सही सलाह नहीं मिल पाती। दर्द की दवाएँ मिलने में भी दिक्कत आती है। परिवार भी नहीं जानता कि किस समय यह सेवा माँगनी है। नतीजा यह होता है कि मरीज आखिरी दिनों में बहुत कष्ट झेलता है।
ग्रामीण भारत में स्थिति कैसी है?
गाँवों और छोटे कस्बों में पैलीएटिव केयर लगभग गायब है। यहाँ ना प्रशिक्षित स्टाफ होता है, ना ढांचा। बड़ी बीमारी वाले ज्यादातर लोग घर पर ही दर्द झेलते रहते हैं। शहर पहुँचने में देर होती है। खर्च भी ज्यादा होता है। कई बार डॉक्टर भी इस सेवा का सुझाव नहीं देते। परिवार को लगता है कि केवल दवाओं से ही सब सम्भल जाएगा। लेकिन सही देखभाल ना मिलने से मरीज की तकलीफ़ बढ़ जाती है।
दर्द से राहत क्यों नहीं मिल पाती?
अध्ययन बताता है कि दर्द निवारक दवाएँ छोटे शहरों में कम उपलब्ध हैं। नियम और नीतियाँ सख्त होने से डॉक्टर खुलकर यह दवाएँ नहीं लिखते। मरीज डरते हैं कि दवाएँ आदत बन सकती हैं। परिवार सोचता है कि यह इलाज बहुत महँगा होगा। जब तक सही जानकारी नहीं मिलती, लोग समय पर मदद नहीं ले पाते। बड़ी बीमारी का तनाव तभी बढ़ता है जब राहत देने वाला सिस्टम कमजोर हो।
क्या हो सकता है समाधान?
सभी डॉक्टरों और नर्सों को पैलीएटिव केयर की ट्रेनिंग दी जाए। हर जिले में पेलीएटिव केयर यूनिट बनाई जाए। दर्द वाली दवाओं के नियम सरल किए जाएँ। लोगों को समझाया जाए कि यह सेवा सिर्फ आखिरी समय के लिए नहीं है। सरकार इसे सामान्य स्वास्थ्य योजना में शामिल करे। अगर यह कदम उठें तो लाखों मरीजों को बड़ा लाभ मिलेगा। राहत मिलने से बीमारी का भार भी हल्का महसूस होगा।
माहिर डॉक्टर क्या कहते हैं?
दिल्ली के डा. एल.एच. घोटेकर कहते हैं कि पैलीएटिव केयर शुरू से मिलनी चाहिए। इससे मरीज का डर कम होता है। इलाज का सफर आसान बन जाता है। बेहतर ट्रेनिंग और ज्यादा सुविधाएँ मिलने से स्थिति बदल सकती है। मरीज बीमारी में भी सम्मान और आराम से जीवन जी सकता है। यह उसके परिवार का बोझ भी कम करती है। इसलिए इसे जरूरी स्वास्थ्य सेवा माना जाना चाहिए।

























